"अब दिल की नही सुनेगें हम
बहुत सुनी हमने इसकी
पर इसने एक नही सुनी हमारी
अब सुनने की बारी है इस नकारे की
बहुत सताया, तड़पाया है इसने हमें
यह कह कर उसे याद करो
जलो रात दिन उसकी यादों में
बहुत हुआ इसका जुर्म हम पर
मिला क्या इसकी सुनकर
सिर्फ दर्द और ज़लालत
क्यों सुनते हैं हम इसकी
जब यह किसी की भी नही सुनता
वैसे भी आज तक किसी को कुछ मिला है
जो मुझे मिल जाता "