Tuesday, January 16, 2018

अपना मुकद्दर

एक तेरे ही इरादे डगमगा गये 
हम तो आज भी उसी मोड़ पर खड़े हैं । 
जहाँ तुम हमें छोड़ गये 
अब क्या गिला शिकवा किसी से 
तुम ही अपना मुकद्दर हमसे तोड़ गये।

दर्द में भी आराम

तुमने मुंह क्या मोड़ा हवाओं ने नाता तोड़ लिया 
तुम जो दूर हुए जैसे किस्मत भी हमें छोड़ गयी 
तुम थे मेरे तो दर्द में भी आराम था 
तुम साथ नही तो खुशियों मैं मुस्कान नहीं।

तेरी मुस्कान

सर्दी की धूप जैसी तेरी मुस्कान देखते ही 
मेरा मन तेरे प्यार की गर्मी से भर जाता है 
गर्मी में सर्द हवाओं जैसी तेरी याद 
मुझे भीनी भीनी खुशबू से भिगो जाती है।

तुम आसमाँ

तुम आसमाँ, मैं हूँ ज़मीं 
हमारा मिलन होगा नही कभी। 
दूर से देख कर एक दूसरे को 
बस खुश होते रहेंगे। 
अगले जन्म में हम साथ रहें 
खुदा से यही दुआ करेंगे ।

तेरे मुरीद

क्या था तुझमें ऐसा जो हम तेरे मुरीद हो गये 
न तब समझ सकें थे न अब समझ में आया 
क्यों तुझे अपना खुदा बनाया 
न तब समझ सकें न अब समझ मे आया