Thursday, May 29, 2014

 "कहाँ हूँ मैं यह मुझे भी होश नहीं
कहीं मैं तेरे ही ख्यालों में गुम तो नहीं "  

Tuesday, May 27, 2014

"तुझे पाने की उम्मीद आज भी है हमें
  पर कभी भूलना ग़वारा नही "
"जब तुम्हें भूल जाना चाहती हूँ तब क्यों तुम्हें ही याद करता है मेरा यह दिल 
  कितना जिद्दी है यह भी इसने क्या कभी किसी की सुनी है "

Saturday, May 24, 2014

"मेरी है तू, तेरा हूँ मैं, मेरी साँसों में आ के समां जा 
पल दो पल की दूरी है बस तेरे मेरे दरमियाँ  
कहाँ है तू आ जा मेरी बाहों में आ जा
मेरे दिल पर छाया है बस अब तेरा ही सुरुर 
रूबरू हूँ मैं तेरे, रूबरू हो तू मेरे 
और क्या चाहूँ मैं अब खुदा से अपने "

Tuesday, May 20, 2014

"रूबरू हूँ मैं तेरे रूबरू हो तू मेरे
"बस इसके सिवा नही अब कुछ भी न  चाहा "

Monday, May 19, 2014

"उनके पास जाने पर  वो नाराज़ होकर हमसे दूर जाने लगते हैं
जब हम दूर जाना चाहते हैं तो वो हमें अपने पास बुलाते हैं "  

Tuesday, May 13, 2014

"सोचा ना था कभी ऐसे भी
 हालातों से वास्ता पडेगा हमारा
किसी के इस कदर पास आ जायेगें कि
दूर जाना भी मुश्किल होगा हमारा
वो दर्द देगा हमें फ़िर भी
हम मुस्कुरायेगें उसे ही याद करके
चाह कर भी दूर ना हो सकेगें उससे
और पल पल उसके ही नजदीक जायेगें
उसे पता भी ना चलेगा और
एक दिन ऐसे ही उसकी
यादों के साथ दफ़न हम हो जायेंगे "
"क्यों खो जाते हो बार  - बार इस दुनिया की भीड़ में
   एक बार मेरा हाथ थाम के तो देखो जरा "
"पहले भी कुछ न माँगा था तुमसे अब भी न कुछ मांगा है
 तुम खुश रहो हमेशा बस यही खुदा से हर बार माँगा है "

Monday, May 12, 2014

दर्द में भी जीना सीख लिया है अब हमने
उसकी यादों को भुलाना भी सीख लिया है हमने 
सोचा न था जिसे सबसे ज्यादा चाहा था हमने 
वो ही इतने  इल्जाम देगा हमें" 


Friday, May 9, 2014

"वो था ही कब हमारा
उसे जाना ही था एक दिन 
और वो चला गया
फिर क्यों उसका इंतज़ार
हम घड़ी -घड़ी  आज भी करते हैं "  


Tuesday, May 6, 2014

"भले ही तू तोड़ता जा अपने हरेक वादे को
फिर भी हमें यकीन हैं अपनी मोहब्बत पर
वादे तोडना तेरी फितरत है तो क्या
मोहब्बत करना मेरी  आदत  है "
"भूल जाना चाहती हूँ तुम्हें मै
 पर कैसे मुमकिन हो यह
  जबकि तुम्हारी यादें ही
 तुम्हें भूलने नही देती "

Monday, May 5, 2014

"जिस दिन तुमसे  होती नहीं मुलाकात
 कुछ अधूरा सा पाती हूँ अपने अंदर
  कह नही पाती तुमसे कुछ भी
बस दिल ही दिल घुटती रहती हूँ मैं "

"क्यों उलझनें दिल की हमारी बढ़ाते हो
 अब मान भी जाओ हमसे
  हम थक गये हैं मनुहार कर कर के
  एक तुम हो कि थके नही
 अभी तक नाराज़ रह कर भी "
"वो कुछ इस कदर हैं ख़फ़ा हमसे मनाने से भी नहीँ मानते
उन्हें यह नहीं मालूम कि गर हम भी हो गये ख़फ़ा उनसे
तो ताउम्र  तड़पेगे हम भी और वो भी एक दूसरे के बिना "