कुछ अहसास
Friday, September 28, 2012
"हुआ एक दिन कुछ ऐसा
जो नही सोचा था कभी वो बात हो गयी ,
जिन्हें देखा था कभी ख्वाबों - ख्यालों में
उनसे ही रूबरू मुलाक़ात हो गयी"
"निगाहें भी न मिली थी और जी भर कर देखा भी न था
फिर कैसे उनकी चाहत का नशा इस कदर मुझे हो गया "
"उसकी यादों में हम इस कदर डूबे कि सुबह से रात कब हुई हमने पता ही नही चला"
"दिन भर उनकी बातों को बार - बार याद करते हैं हम
और रात में इस इरादे से
जल्दी सो जाते हैं की आज खवाबों में ही शायद उनका दीदार हो जाए "
"यह मलाल है हमें क्यों कर हैं बेपरवाह वो हमसे,
होते होंगे लाखों फ़िदा उन पर लेकिन हमसा कोई भी नही"
" अब बार - बार मरने को जी चाहता है क्योंकि
उसकी मोहब्बत में मर कर हमें जीना रास आ गया "
" कभी अपनी जुबान से भी तो कुछ कहें
कब तक हम उनकी नज़रों की भाषा समझें "
तेरी यादों ने चुरा ली हैं मेरी नींदें अब,
जागी आँखों से तेरे ख़्वाब मैं देखूँ कैसे |
" क्यों नही रहा है मुझ पर मेरा ही अख्तियार
कहीं यह काले जादू का असर तो नहीं "
"जब - जब सोचा बस तुझे ही सोचा खवाबों में ही देखा तो बस तुम्हे ही
यह हकीकत है या है मेरे मन का वहम लगता है जैसे तुम मेरे पास ही कहीं हो "
" तमाम उम्र हम देखेगे उनका रास्ता यह हमने भी सोचा है
और तमाम उम्र वो हमे तरसायेगे शायद कुछ ऐसा ही उन्होंने भी सोचा है"
"हमें आदत है उसकी यादों में डूबे रहने की
जबकि उसे आदत है हमें ही भूल जाने की "
"यह मौसम का जादू है या उसका अहसास छू गया है मुझे
सुहाना ही सुहाना नज़र आ रहा है सब मुझे "
" सपनो से परे भी तो कभी रूबरू आकर भी मिल
बता तो सही क्यों तूने मेरी रातों की नींदे उड़ा रखी हैं "
" क्यों ढूंढती हैं ये मेरी निगाहें बस तुझे ही
जबकि तू ने ही तो मेरा दिले सुकून छीना है "
"जिंदगी यूं ही न बीत जाए कहीं उसके बगैर
यह सोच कर बहुत दिल घबराता है आज कल "
"अब मुझे कुछ भी याद नही सिवा उसके,
बंद और खुली आँखों में उसका ही चेहरा जो समाया है"
"कुछ याद उसकी ऐसी आयी की आँखों में नमी और होठों में मुस्कराहट ले आयी "
"तुम यूं हमें पुकारा न करो
यूं तुम हमें इशारा न करो
दूर हैं तुमसे यह मजबूरी है हमारी
तुम तनहाइयों हमें यूं तडपाया न करो"
"क्यों रखते नहीं ख्याल वो बस मेरे ही ख्याल का,
हमें रहता है हर वक्त मलाल बस इसी सवाल का "
"उनके ही ख्यालों में डूबे बैठे थे हम ख्यालों में खोया देख कर हमसे ही नाराज़ हो कर चले गए"
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